लेखनी प्रतियोगिता -02-Dec-2021
लेखनी कहानी
विश्व ओलंपिक चैंपियनशिप की प्रदर्शनकारी दावेदारी में,
मेजबान देश में विश्व के विभिन्न देश अपने अपने देश का बेहतरीन से बेहतरीन प्रदर्शन व नेत्तृत्व में संलग्नित थे।
मैच रोमांचक पर रोमांचक होते जा रहे थे। खिलाड़ियों की दिन-रात की मेहनत व अथक परिश्रम भरे प्रयासों का मूर्त रूप उनके प्रदर्शन में परिलक्षित होकर सामने उभर कर आ रहा था।
खेलों के साथ-साथ विभिन्न देशों की कला-संस्कृति के भी
सुंदर-सुंदर प्रोग्राम प्रस्तुतियां निखर कर सामने आ रही थीं।
यूं तो आश्लेषा बहुत ही साधारण ग्रामीण परिवेश में जन्मी व पली-बढ़ी थी, किन्तु बचपन से ही उसकी खेलों के प्रति गहन आसक्ति थी। खूब दौड़ना-भागना, ऊंचा-ऊंचा कूदने-फांदनेका बहुत चाव रहता था आश्लेषा को।
आश्लेषा के बाबा हमेशा उसका हौंसला बढ़ाते और कहते," आश्लेषा तू मेरी बेटी नहीं, बेटा है और एक दिन तू मेरा नाम अवश्य रोशन करेगी मेरा बेटा बन। आश्लेषा तालियां बजाती खूब जोर-जोर से हंसती और कहती हां बाबा जरुर करूंगी। पर बाबा क्या मुझे मौका मिलेगा?
बाबा कहते, हां बेटा मेहनत अपने हाथ है, फिर मौका मिलने पर अवश्य ही उसका फायदा लेना चाहिए। मेरा आशिर्वाद तेरे साथ हमेशा ही है मेरे बेटे।
कुछ समय पश्चात ही आश्लेषा के बाबा उसे अकेला छोड़ कर इस संसार से विदा लेकर चल दिए। अपने छोटे भाई- बहनों को पालने व घर चलाने में आश्लेषा अपनी मां के साथ जी-तोड़ मेहनत करती। घर के साथ-साथ बाहर के भी सभी काम आश्लेषा ने अपने हाथ में ले लिये थे। धीरे-धीरे एक तरहां से अब आश्लेषा ही घर के लिए रीढ़ की हड्डी बनती जा रही थीं।
आश्लेषा के बाबा आए दिन उसके सपने में आकर कहते कि आश्लेषा बेटा, भूल न जाना अपना वादा , तुम्हें एक दिन मेरा नाम पूरे देश में रोशन करना है।
पर अब आश्लेषा का मन खेल कूद में नहीं लगता था और ना ही उसके पास समय था। उसे तो बस अपने परिवार की ही फिक्र रहती थी हर दम। वो किसी भी तरह अपनी मां का दुख कम करना चाहती थी, अपने भाई-बहनों को अच्छी शिक्षा-दीक्षा व संस्कार मुहैया कराना चाहती थी।
हालांकि वह खुद भी बहुत बड़ी तो न थी। पर असमय ही
जिम्मेदारी के अहसास ने उसे उम्र से पहले ही परिपक्व कर दिया।
आश्लेषा के पापा जिस गैस (सिलेंडर एजेंसी) में कार्यरत थे और सप्लाई करते हुवे सिलेंडर गाड़ी में हुए भीषण हादसे में अपनी जान गंवा बैठे थे, उस कंपनी ने उसके पिता की मृत्यु के मुआवजे के रूप में चंद रुपये दे दिये थे।
किन्तु ये रुपये एक तो गिनती की मात्रा में नगण्य के बराबर थे, और उस पर क्या उसके जीवन में पिता की क्षतिपूर्ति का वरण कर सकते थे। शायद कतिपय नहीं।
कुछ वर्ष पश्चात जब आश्लेषा थोड़ी बड़ी हुई तो उसने उसी कंपनी गैस एंजेसी में नौकरी कर ली। उस कंपनी का मालिक इस समय काफी उतार-चढ़ाव भरे जीवन से गुजर रहा था। मालिक भी उसके पिता की ईमानदारी व मेहनत का कायल तो पहले ही था और उसकी लग्न देखकर उसने उसे अपने यहां नौकरी पर रख लिया। इन सब घटनाक्रमों में आश्लेषा की पढ़ाई तो बहुत पीछे ही रह गयी किन्तु उसे अपने भाई बहनों के प्रति गहरा चाव रहा।
आश्लेषा के अंदर शारीरिक श्रम से जूझने की अपार व अदम्य क्षमता थी। मालिक उसकी इस क्षमता से भली-भांति परिचित था। उसकी लग्न को देखते हुए, एक रोज मालिक ने उसे बातों ही बातों में कहा कि, " आश्लेषा तुम
भारत्तोलन खेलों में हाथ क्यूं नहीं आजमातीं। उसे यूं लगा जैसे उसके पिता उसके सम्मुख खड़े हो गये हों वहां। भावुक होती आश्लेषा ने उन्हें अपने पिता के स्वप्न से अवगत कराया।
मालिक ने उसके सर पर हाथ रखते हुए कहा, आश्लेषा तुम्हारे पिता का स्वप्न अवश्य पूरा होगा और उन्होंने आश्लेषा को भारत्तोलन शिक्षा के उचित प्रशिक्षण हेतु
जिम एकेडमी में दाखिला दिलवा दिया।
आश्लेषा खूब मेहनत करती। नौकरी भी करतीं व अपने प्रशिक्षण पर भी पूरा ध्यान केंद्रित करती। इतने वर्षों के शिक्षण व मेहनत प्रयासों से वो भारत्तोलन खेल प्रक्रिया में
काफी मंझी खिलाड़ी के रूप में उभरी।
जिम एकेडमी ने कई बार आश्लेषा के स्टेट लेवल और
राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित प्रतियोगिताओं में विजयी-जीत हासिल करने पर आश्लेषा से अन्तर्राष्ट्रीय खेल मुकाबलों में एप्लाई फार्म भरवाया। आश्लेषा का आर्थिक स्तर काफी निम्न था, तो एकेडमी के उच्च प्रशिक्षक ने उसकी काफी सहायता भी की और साथ ही राष्ट्रीय खेल विभाग के अन्तर्गत आश्लेषा को, " उच्च क्षमतावान खिलाड़ी निम्न आर्थिक स्तर स्कीम से अंतरराष्ट्रीय दावेदारी एप्लीकेबल सदस्य से प्रवेश दिलवाया।
अब आश्लेषा की असली परीक्षा आरम्भ हुई, जहां से उसे,
कड़ी मेहनत व अभ्यास का निरंतर प्रयास करना था। आखिर पूरे राष्ट्र को उससे अत्यधिक आशा जिज्ञासा थीं।
आश्लेषा ने खुद को झोंक दिया और इस कदर अभ्यास रत हो गरी जैसे, "कोई स्त्री अपनी लज्जाशीलता बनाए रखने व बचाए रखने में अपनी जीवन-सांसें लगा देती हैं।"
अब वो दिन आ गया था जब वो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने देश की एकल दावेदार थीं।
" मुकाबले के समय, आश्लेषा ने, मां भारती को अपना साक्षात प्रणाम करके, अपने साथ लाए बैग से अपने देश की माटी निकाल अपने मस्तिष्क पर लगायी, और साथ ही साथ अपने पिता का भी स्मरण मन में किया।
और मुकाबले में कूद पड़ी। उसने अपनी सम्पूर्ण शारीरिक क्षमता लगाकर उच्च बेहतरीन प्रदर्शन किया। चारों ओर तालियां ही तालियां बजने लगीं।
आज आश्लेषा ने अपने देशवासियों की साझी मदद के तहत, मुकाबले में द्वितीय स्थान प्राप्त किया।
बाकी देशों के खिलाड़ियों ने भी अपने देश के नेतृत्व में बढ़िया से बढ़िया प्रदर्शन किया।
आज विजयी खिलाड़ियों को ईनाम प्रदान दिवस था। बड़ी ही शान से, " आश्लेषा-हिम्मत परवाज़ " हिंदोस्तां रजत-पदक विजेता के रूप में घोषणा हुई, आश्लेषा गर्व से सर ऊंचा करके स्टेज पर उपस्थित हुईं व रजत पदक हाथ में थामें बोलीं
🙏वंदेमातरम् जयहिंद भारत माता की जय🙏
अब वहां भी तालियां बज रही थीं, और सम्पूर्ण भारतवर्ष में भी खुशी की लहर गडगडाती तालियों से बज रही थीं।
आश्लेषा ने आज पिता का सपना भी पूरा किया, और अपने राष्ट्र को भी गौरांवित किया।
आज विदेश के आसमां में देश की एकता अपना सर ऊंचा किये , आश्लेषा का अभिवादन कर रही थीं।।
🙏🙏🙏🙏
प्रतियोगिता हेतु प्रविष्टी 🙏
Diwa Shanker Saraswat
03-Dec-2021 08:15 PM
बहुत सुंदर कहानी
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Seema Priyadarshini sahay
03-Dec-2021 01:36 AM
बहुत खूबसूरत कहानी
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Amir
03-Dec-2021 12:16 AM
Very nice story
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